इंदौर
मधुबनी चित्रकला शैली पर आर्ट कैंप की शुरुवात संस्था आर्ट वे और क्रिएट स्टोरीज एनजीओ के बैनरतले अभिनव कला समाज में हुई जिसमे मधुबनी कला में एक्सपर्ट और वरिष्ठ कलाकार अलका झा ने इसकी शुरुवात की , उन्होंने बताया बताया कला की दुनिया में मधुबनी चित्रकला वर्तमान समय में अपरिचित नाम नहीं हैं, यह चित्रकला शैली दुनिया में विशिष्ठ स्थान प्राप्त कर चुकी है ।
संयोजक दीपक शर्मा ने बताया 3 मई से 8 मई तक छह दिनी इस आर्ट कैंप में सुबह 10 से 12 बजे तक मधुबनी आर्ट को बेसिक से सिखाया जा रहा है एवं प्रोडक्ट डिजाइनिंग भी सिखाई जाएगी साथ ही सोमवार को फोक आर्ट की डेमो वर्कशॉप वरिष्ठ कलाकार शुभा वैद्य लेंगी एवं अंतिम दिन इस वर्कशॉप में तैयार हुई कृतियों की प्रदर्शनी लगेगी ।
इस वर्कशॉप में अपर्णा गावरिकर , जयेश वर्मा , सुरभि ठाकुर , राजेश्वरी जोशी , आयुषी परमार , डिंपल मलिक , ज्योति उपाध्याय , निकिता बैस , गौरीशा नीमा, छणक नानेरिया , साक्षी जैन , प्रज्ञा जैन , शिखर बर्मन , सानवी नीमा , लक्ष्मी गौतम , लता यादव , अनिशा अग्रवाल , गौरी फाटक , आशा चंदौर , पूजा अवस्थी आदि ने भाग लिया है ।
एक्सपर्ट अलका झा ने बताया भारत के बिहार राज्य में मधुबनी जिला है । मधुबनी जिले की बोले जाने वाली प्रमुख भाषा मैथिली है । प्राचीन भारत में मिथिला एक राज्य था, जिसका उल्लेख बाल्मीकीय रामायण में है । कहा जाता है कि सीता-राम के विवाह के समय राजा जनक ने पूरे मिथिला वासियों से पूरी मिथिला को सजाने का आग्रह किया था।तब इस कला के माध्यम से पूरे मिथिला को सजाया गया था। मधुबनी चित्रकला एक पारंपरिक चित्रकला है जो बिहार राज्य के मधुबनी जिले और आस-पास (मिथिलांचल) के क्षेत्र से जन्मी एक प्राचीन लोक चित्रकला शैली है। यह परंपरागत लोक कला है, जिसमे प्राचीन कथाओं एवं परंपराओं को पर्व-त्योहारों, पूजा -पाठ आदि के समय दीवार पर भित्ति चित्र के रूप में और भूमि में अरिपन के रूप में बनाया जाता था । वर्तमान में ये लोक कला भित्ति चित्र, भू-चित्र के साथ -साथ पट चित्र के रूप में भी बनाई जा रही है। साथ ही डिकोरेशन के रूप में भी उपयोग में लाई जा रही है।
इस कला में चटक रंगों का प्रयोग किया जाता है। पहले प्राकृतिक रंगों का उपयोग किया जाता था। जो हस्त निर्मित होते थे। मधुबनी पेंटिंग में मानव चित्रण के साथ-साथ प्राकृतिक दृश्यों का चित्रण भी होता है, जैसे कि पुष्प, पेड़-पौधे, जीव-जंतु,और पशु-पक्षियाँ आदि । यह चित्रकला लोगों की जीवन शैली और पर्यावरण के साथ संबंध को दर्शाने का भी कारण बनती है। इन चित्रों के विषय प्रमुख्यतः राम- सीता तो होते ही थे साथ ही अन्य देवी – देवताओं के चित्र भी बनाए जाते हैं । इसके अलावा सूर्य-चंद्रमा, जीव-जन्तु तथा प्रकृति नजारों, पेड़-पौधों के साथ, प्राकृतिक रंगों के द्वारा चित्रित किया जाता था ।
यह चित्रकला बिहार के मिथिला क्षेत्र घर-घर में सामाजिक और धार्मिक कार्यों में ही की जाती है अब इस चित्रकला की राष्ट्रीय तथा अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पहचान बनी चुकी है ।दीवार और भूमि पर बनाने वाले ये चित्र जो की अब कागज, केनवास, कपड़ों और अनेक सजावटी वस्तुओं पर बनने लगी है।
इस कला को बनाने वाले कई कलाकार पद्म श्री से सम्मानित हो चुके हैं।